मन हल्का कर डाला.....
एक तुम्हारे फोन ने मेरा भारी मन हल्का कर डाला। दर्द जमाये जड बैठा था एक छुअन ने सब हर डाला॥ अनहोनी ना दस्तक दे दे कदम-कदम पर डर लगता था , घर में सब रहते थे फिर भी सूना सूना घर लगता था , सुख का अपना घर होता है , उसको भी कर बेघर डाला। दर्द जमाये जड बैठा था एक छुअन ने सब हर डाला॥ एक स्वाद के लिये जनम भर अपनी भूख सहेजी मैंने , तृप्ति मिलेगी इसीलिये बस प्यास की पाती भेजी मैंने , दर्द जमाये जड बैठा था एक छुअन ने सब हर डाला॥ बिना विचारे दिल पर प्रेम का लिख ये ढाई आखर डाला। आँखों के इस कोप भवन में रेगिस्तान है सपनों का , इन उधार की नींदों में बस एक भरोसा अपनों का , छलक रहे क्यों इन नयनों में , इतना गंगा जल भर डाला। दर्द जमाये जड बैठा था एक छुअन ने सब हर डाला॥