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Showing posts from June, 2011

वासंती मौसम भी पतझड़ से हो गये......

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आँखों में पाले तो पलकें भिगो गये। वासंती मौसम भी पतझड़ से हो गये॥ बीते क्षण बीते पल जीत और हार में , बीत गयी उम्र सब झूठे सत्कार में , भोर और संध्या सब करवट ले सो गये। आखों... जीवन की वंशी में साँसों का राग है , कदमों में काँटे हैं हाथों में आग है , अपनों की भीड़ में सपने भी खो गये। आँखों .... रीता है पनघट रीती हर आँख है , मुरझाये फूलों की टूटी हर पाँख है , आँधियों को देख कर उपवन भी रो गये। आँखों... कितना अजीब फूल काँटे का मेल , जीवन है गुड्डे और गुड़्यों का खेल , पथरीले मानव को तिनके भिगो गये। आँखों....

सर्वेश एक--रूप अनेक.....(अमेरिका के संस्मरण--2011)

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- अभी तक मेरी व्यक्तिगत परख सीमित थी सर्वेश के बारे में , मैं यही जानता था कि वो एक व्यंग्यकार हैं लेकिन इस बार जब यू. एस. और कनाडा की यात्रा में 35 दिनों का साथ रहा तब मालूम पडा कि इन महाशय में तो कई सर्वेश अस्थाना चुपचाप छिपे बैठे हैं , उन्हें देख कर मेरा भी नज़रिया बदला और प्रवीन की सोच भी.....। निदा साहब ने कहा भी है कि- हर आदमी में रहते है दस बीस आदमी , जिसको भी देखना हो कईबार देखिये । - ये व्यक्ति बाहर से जितना परिपक्व दिखायी देता है उतना ही अन्दर से मासूम है , इसके अन्दर एक नटखट बच्चा है जो हर वक्त शरारत करने के अवसर ढूँढता रहता। कई अवसरों पर ऐसा देखा गया कि माहोल बहुत गम्भीर है लेकिन इनके आ जाने से वो प्रफुल्लित हो गया। - सोने के मामले में हम दोनों की नींद के बराबर सोने वाले इन महाशय का जबाब नहीं। चाहे वो हवाई जहाज हो , कार हो , ट्रेन हो , बस हो या फिर 10 मिनिट की यात्रा वाली फेरी , भाई साहब मोका मिलते ही नींद को निराश नहीं करते थे। इसका कारण इनसे पूछा तो कहते भाई साहब मैं क्या करूँ ? नींद इतनी बेशर्म है कि बिना बुलाये चली आती है , अतिथि का सम्मान हमारा धर्म है।