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समन्दर दिखेगा नहीं.......

तुम नदी कहकहों की तुम्हें आँख में आँसुओं का समन्दर दिखेगा नहीं। सब्र का बाँध यूँ तो है मज़बूत पर  टूट जायेगा फिर कुछ बचेगा नहीं॥ तुम तो  कादम्बिनी जैसी फूली फली और् शहरों  के अधरों की सरिता रहीं , मैं धर्मयुग  सा  हर रोज़ छोटा हुआ पर कटे  हँस  की  सी  उडानें  भरीं , ये तो तय है कि नि:सार संसार में सार गर्भित जो होगा बिकेगा नहीं। जो भी गिर कर उसूलों से मुझको मिला जाने क्यों  हाथ  उसको  बढा  ही नहीं , डाल  से  जो  गिरा  है धरा पर सुमन आज  तक  देवता  पर  चढा  ही नहीं , आत्म सम्मान के पेड़ का ये तना टूट जायेगा पर अब झुकेगा नहीं॥ ओ  मेरे  देवता , मुझको  ये तो बता मेरी पूजा में क्या-क्या कमी रह गयी , मेरे अधरों  पे  भरपूर  मुस्कान थी मेरी आँखों में फिर क्यों नमी रह गयी , जो भी मिल जायेगा लूँगा सम्मान से हाथ ये याचना को बढेगा नहीं॥

क़सम तोड़ दें.........

चाँदनी रात में- रँग ले हाथ में- ज़िन्दगी को नया मोड़ दें , तुम हमारी क़सम तोड़ दो हम तुम्हारी क़सम तोड़ दें । प्यार की होड़ में दौड़ कर देखिये , झूठे बन्धन सभी तोड़ कर देखिये , श्याम रंग में जो मीरा ने चूनर रंगी वो ही चूनर ज़रा ओढ़ कर देखिये , तुम अगर साथ दो- हाथ में हाथ दो- सारी दुनियाँ को हम छोड़ दें... तुम हमारी क़सम तोड़ दो हम तुम्हारी क़सम तोड़ दें । देखिए मस्त कितनी बसंती छटा , रँग से रँग मिलकर के बनती घटा , सिर्फ दो अंक का प्रश्न हल को मिला जोड़ करना था तुमने दिया है घटा , एक हैं अंक हम- एक हो अंक तुम- आओ दोनों को अब जोड़ दें..... तुम हमारी क़सम तोड़ दो हम तुम्हारी क़सम तोड़ दें । स्वप्न आँसू बहाकर न गीला करो , प्रेम का पाश इतना न ढीला करो , यूँ ही बढ़ती रहें अपनी नादानियाँ हमको छूकर के इतना नशीला करो , हम को जितना दिखा- सिर्फ तुमको लिखा- अब ये पन्ना यहीं मोड़ दें..... तुम हमारी क़सम तोड़ दो हम तुम्हारी क़सम तोड़ दें ।