नववर्ष की आशा का गीत
गुनगुनाकर कह रहीं हमसे हवाएं आओ मेरे साथ सपनों को सजायें वर्ष भर जो शूल से चुभते रहे हैं आओ उनको फूल का उपहार दे दें, जिस कली ने ज़िन्दगी को खुशबुएँ दीं हम सुगंधि का उसे आभार दे दें, क्यों न उसके फूल गमलों में लगाएं आओ मेरे साथ सपनों को सजायें।... जिस नदी के जल को उसने छू लिया है वो मुझे गंगा सी पावन लग रही है, मेरे आँचल में सभी त्यौहार होंगे एक आशा की किरण भी जग रही है, हाथ में ले हाथ सारे ग़म भुलाएं। आओ मेरे साथ सपनों को सजायें.... नित शिखर छू लें नए आयाम के हम दूर होने की न सोचें पर धरा से, जिसने हमको कर दिया इतना बड़ा है आज भी उनके लिए हों हम ज़रा से, सोच के अपने फलक को हम बढ़ाएं आओ मेरे साथ सपनों को सजायें...