दीवारें ढहने दो...

दम घुटता हो बीच में जिनके
वो सब दीवारे ढहने दो।

ना मेने कोई ध्यान लगाया
और न कोई करी तपस्या।
इसी लिए जीवन मे सारे
समाधान बन गए समस्या
मन की मन में रह ना जाये
इसीलिए वो सब कहने दो।

धूप न निकली, कोहरा छाया
तापमान में कमी हुयी है।
पास से देखो इस पर्वत पर
बर्फ प्यार की जमी हुयी है।
छूने भर से पिघल के दरिया
बन बहता है तो बहने दो।  

सुन कर मृग आ जाएँ ऐसी
मीठी मेरी तान नही है।
सब आसानी से मिल जाये
ये किस्मत धनवान नही है।
हो जाऊं मैं धनी गले में
तुम इन बाहों के गहने दो










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