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Showing posts from 2018

संस्मरण- गुम हुआ ब्रीफकेस

जब जब चेन्नई एयरपोर्ट पर उतरता हूँ, तब तब एक पुरानी घटना मुझे रोमांचित कर कभी गलती न करने की प्रेरणा देती  रहती है। आज भी जब अजात शत्रु और शम्भू शिखर के साथ चेन्नई की धरती पर पैर रखा है तो पुरानी दुर्घटना चलचित्र की भांति आंखों के सामने तैर रही है.... कितने वर्ष पहले की बात है ये तो अनुमान नहीं लेकिन घटना है बहुत खतरनाक। विगत लगभग 10 वर्ष पहले चेन्नई आना हुआ था एक कवि सम्मेलन में। जिस फ्लाइट में मैं था उसी में वेदव्रत बाजपेयी, अनु सपन समेत दो कवि और थे। वेदव्रत उस वक्त के व्यस्ततम कवियों में गिने जाते थे इसलिए उनका सूटकेस बड़ा होता था। मेरी अटेची छोटी सी थी। जब हम एयरपोर्ट पर उतरे तो एक ही ट्राली में सभी का सामान रख लिया गया। मेरा ब्रीफकेस छोटा सा था इसलिए ट्रॉली के पीछे वाले स्पेस में ऐसा फिट होगया की सामान्य रूप से इन लोगों की बड़ी अटेचियों में दिखाई भी नहीं दे रहा था। मेरा व्यक्तित्व भी शुरू से मेरे ब्रीफकेस की तरह ही रहा है। जैसे ही गाड़ी हमे लेने आई हम सब लोग रईसों की तरह बिना ये परवाह किये कि हमारा समान भी गाड़ी में जाना है, जल्दी जल्दी कूद कर गाड़ी में बैठ गए। सोचा ये काम तो ड्र

संस्मरण- अरे, इसे सीधा तो करिये विष्णु भगवान****

****अरे, इसे सीधा तो करिये विष्णु भगवान**** ( एक मजेदार संस्मरण ) अभी चार दिन पहले की ही तो बात है। साहित्य गंधा के संपादक श्री सर्वेश अस्थाना ने बताया कि सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि माननीय राज्यपाल श्री रामनाईक होंगे, तभी से उनसे मिलने की इच्छा प्रबल हो रही थी। 11 नवंबर को यह आयोजन होना था। एक दिन पहले मैं वहीं था, तो रुक जाना बेहतर समझा। वैसे भी कायदे से मुझे रुकना ही था। क्यों कि एक तो मैं सहित्यगन्धा के संपादक मंडल में मैं परामर्श दाता के पद पर हूँ, दूसरे हमारे आदरेय श्री कृष्ण मित्र जी को  अनवरत गंधा सम्मान भी मिलना था। तो उनके सम्मान में शरीक होना मेरा दायित्व बनता है। दो दिन पहले जब बोर्ड की मीटिंग हुई तो मैंने सर्वेश जी से मज़ाक में कहा, भाई कोई ऐसा काम भी कर देना जिससे मेरा फोटो भी राज्यपाल के साथ खिंच जाए। वो बोले- दादा, कैसी बात करते हो, आप स्वागत समिति में रहेंगे और माननीय राज्यपाल जी का बुके देकर सम्मान भी करेंगे। मैंने मन ही मन सोचा, अरे ये मज़ाक तो सच होने जा रहा है। लेकिन अगले ही 10 मिनिट में सर्वेश ने आदेश दिया- दादा, आप को राज्यपाल जी का जीवन परिचय भी प्रस्तुत करना है

संस्मरण- हरी जैकेट

*******हरी जैकेट******** अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है। 20 नवंबर को उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले में जाना हुआ। वहां के जिलाधिकारी कैप्टन श्री प्रभांशु जी के आमंत्रण पर एक कॉम्पेक्ट काव्यसंध्या का आयोजन किया गया था। प्रभांशु जी आगरा और अलीगढ़ में अपर जिलाधिकारी रह चुके हैं इसलिए पूर्व परिचित थे। मेरे अलावा श्री वसीम बरेलवी,श्री कुंवर बेचैन, सरिता शर्मा और सर्वेश अस्थाना। मुझे ट्रेन से ही जाना था इसलिए एक दिन पहले मैंने उन्हें फोन किया कि सर स्टेशन किसी को रिसीव करने भेज देना। उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि आप चिंता न करे स्टेशन पर सिटी मजिस्ट्रेट आपको रिसीव करेंगे। वैसे तो मैं आता लेकिन मेरी मीटिंग है इसलिए वो आपको लेने आएंगे। समय से एके घंटे लेट मेरी ट्रेन गोंडा स्टेशन पहुँची। सिटी मजिस्ट्रेट साहब एक गुलदस्ता लिए मेरे कोच के सामने खड़े थे। इस तरह कोई यात्रा समाप्ति पर मिल जाये तो समझ लो यात्रा की थकान फुर्ररर। जैसे कि हम लोगों की आदत होती है हर चीज के लिए पहले आश्वस्त होना चाहते है। उसी के मद्दे नज़र मैं पूछ बैठा- सर हम लोगों के लिए जो होटल किया गया है वह ठीक है?  उन्होंने बताया बहुत अच्

संस्मरण - एक फ़ेन पुलिस अधिकारी

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इसे पूर्व जन्मों का प्रताप कहूँ या बड़ो का आशीर्वाद कुछ समझ मे नही आता है। एक पुलिस अधिकारी जो पिछले 20 वर्षो से मुझे दूर से कवि सम्मेलनों में सुनता रहा, मुझे चाहता रहा, मुझे फॉलो करता रहा, और मुझे देवता मानता रहा, लेकिन कभी बात नही हुई। जब से फेसबुक और यू ट्यूब आया तब से रात रात भर मुझे सुनने लगा और गत 2 वर्षों से फोन पर वार्तालाप तथा वाटस एप पर चेटिंग कर अपना आदर प्रस्तुत करता रहा। उसके लिए कल शनिवार दिनांक 10 जनवरी के दिन किसी त्योहार से कम नही था जब गोमती नगर के विपुल खंड में होने वाले कवि सम्मेलन में उसे मुझसे मिलने आना था। अपनी ड्यूटी आदि दायित्वों को सही से समायोजन करने के बाद जब रात के साढ़े ग्यारह आलमबाग से गोमती नगर आये तो मेरा काव्यपाठ समाप्त हो चुका था। लेकिन कवि सम्मेलन समाप्ति के बाद जब वह भीड़ को चीरते हुए मंच पर आए और मेरे पास आकर ज़ोर से सेल्यूट मारा और मेरे पैर छुए तो मुझे उन्हें पचानाने में बिल्कुल परेशानी नही हुई। मैंने फिर भी पूछने के अंदाज़ में कहा- नीरज द्विवेदी? तो वो बोले यस सर। उनका पहला वाक्य था - सर आप मेरे अभिताभ बच्चन हो, और आज अपने हीरो के सामने खड़े होकर मुझ

अद्भुत तनजानिया ( संस्मरण ) भाग-4

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15 जनवरी 2018 आज हमारा विदाई का दिन था। कुछ सामान रात को ही पैक कर लिया था शेष सुबह उठकर जल्दी जल्दी समान जमाया। कल की ट्रिप से कोई संतुष्ट नहीं लग रहा था। न ही जितेंद्र, न ही शिवि और न ही स्वयं पाठक जी। आज सोमवार था, काम का दिन, आज बॉस आने वाले है इसलिए जितेंद्र ने कल ही हमसे विदा ले ली थी।  बहुत भावुक थे जब वो हमसे जुदा हुए । इन तीन दिनों में जितेंद्र ने हम लोगो का साथ एक पल को भी नहीं छोड़ा। खूब सहयोगी भूमिका में रहे, संस्था के लिए भी और हमारे लिए भी। आज साढे नो बजे हम लोग नाश्ता करके अपना सामान लेकर नीचे आगये। यूँ हमारी फ्लाइट शाम को 5 बजे थी लेकिन पाठक जी शायद कल की कमी पूरी करना चाहते थे। दोनों गाड़ियों में जैसे ही समान रखना शुरू किया तभी तरुण वशिष्ठ जी होटल में आगये। और घर चलने का आग्रह करने लगे। उन्होंने बताया उनका बेटा बीमार है और वो हम लोगों से मिलना चाहता है। मैं खुद को रोक नहीं सका ये सुनकर। प्रवीण और पाठक जी की सहमति ली और सभी लोग चल दिये उनके आवास पर। रास्ते मे हम टेम्पल स्ट्रीट से गुजरे। तंजानिया देश मे इस मार्ग पर मंदिर, मस्जिद, चर्च , गुरुद्वारा सभी हैं। आ